Monday 28 July, 2008

मां

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी मां

बांस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी मां

चिड्रियों के चहकार में गुंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी मां

बिवी, बेटी, बहन, पड्रोसन
थोडी थोडी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी मां

बांट के अपना चेहरा, माथा,
आंखें जाने कहां गई
फटे पुराने इक अलबम में
चन्चल लड्रकी जैसी मां

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